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अक्टूबर 12, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आदिवासी लोक संस्कृति में भील जनजाति के लोकगीतों एवं लोकनृत्यों का ऐतिहासिक महत्व

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      भारत एक विविधता से भरा हुआ देश है जहाँ विभिन्न भाषाएँ, संस्कृतियाँ, परंपराएँ और जीवनशैलियाँ देखने को मिलती हैं। इन्हीं विविधताओं के बीच आदिवासी समाज अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान और लोक परंपराओं के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिवासी संस्कृति की आत्मा उनके लोकगीतों और लोकनृत्यों में बसती है। ये दोनों न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि उनके जीवन दर्शन, सामाजिक एकता, धार्मिक विश्वास और भावनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी हैं। आदिवासी लोक संस्कृति में लोकगीतों और लोकनृत्यों का गहरा महत्व है, क्योंकि इनके माध्यम से ही उनकी संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहती आई है।      आदिवासी लोक संस्कृति मौखिक परंपराओं, गीतों, नृत्यों, कहानियों और अनुष्ठानों पर आधारित होती है। यह संस्कृति लिखित ग्रंथों पर नहीं, बल्कि स्मृति और अभिव्यक्ति पर निर्भर करती है। आदिवासी समाज प्रकृति के अत्यंत निकट रहता है और उसका संपूर्ण जीवन पर्यावरण से जुड़ा होता है। जंगल, नदी, पर्वत, वृक्ष, पशु-पक्षी आदि सभी उनके जीवन और संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। इसी संबंध को वे अपने लोकगीतों और ल...

गोविन्द गिरी का भगत आंदोलन और मानगढ़ हत्याकांड

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      स्वतंत्रता के लिए सतत् संघर्ष और शौर्य परम्परा में राजस्थान का भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रहा है। राजस्थान के स्वतंत्रता आन्दोलन, सामाजिक और धार्मिक पुनरोत्थान और स्वदेशी आन्दोलन का राजस्थान के जन-जीवन पर काफी असर पड़ा है। श्यामजी कृष्ण वर्मा, केसरीसिंह बारहठ, गोपालसिंह, अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक और मोतीलाल तेजावत राजस्थान में जनजागृति के अगुवा रहे हैं, किन्तु स्वतंत्रता और सामाजिक, धार्मिक सुधार की पहली मशाल गुरू गोविन्दगिरी ने जलाई और राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम में भीलों को भागीदारी दिलाने का श्रेय भी पूर्णतया गुरू गोविन्द गिरी को जाता है। उन्होंने समाज सुधार का प्रचण्ड आन्दोलन छेड़कर लाखों भीलों को भगत बनाकर सामाजिक जनजागृति एवं भक्ति आन्दोलन के जरिये आजादी की अलख जगाई।   जीवन परिचय -   वागड़ में ब्रिटिश शासन एवं सामन्तवादी सत्ता के खिलाफ गुरू गोविन्द गिरी ने आवाज उठाई तथा जनजाति भील समाज की रूढ़िवादी मान्यताओं के खिलाफ उन्होंने बगावत के झण्डे गाड़ दिये और अपने त्याग, तपस्या और कर्मठता से स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास...

अनूठी है दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी बच्चों की नामकरण परम्परा

    दक्षिणी राजस्थान में मुख्य रूप से बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले आते है जो वागड़ के नाम से प्रसिद्ध है। वागड़ क्षेत्र में भील, मीणा, गरासियाऔर डामोर जनजातियां निवास करती है। प्राचीन वागड़ क्षेत्र में वर्तमान डूंगरपुर और बांसवाड़ा के राज्यों तथा मेवाड़ राज्य का कुछ दक्षिणी भाग अर्थात छप्पन नामक प्रदेश का समावेश होता था। अध्ययन क्षेत्र का परिचय -      दक्षिणी राजस्थान के वागड़ क्षेत्र में भील, मीणा, गरासिया और डामोर जनजातियां निवास करती है। लगभग 80 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाला वागड़ का विशाल क्षेत्र 23° 1' से 74° 24' पूर्वी देशान्तरों के मध्य स्थित है। आदिवासी क्षेत्र वागड़ अंचल राजस्थान का सर्वाधिक पिछड़ा, अविकसित मूलभूत बुनियादी नागरिक सुविधाओं से वंचित क्षेत्र है। सदियों से अशिक्षा और अंधकार के क्षेत्र में जी रहे आदिवासी लोगों के जीवन में शिक्षा और ज्ञान की रोशनी लाने की त्वरितः आवश्यकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल और कृषि विकास की योजनाओं तक लोगों की पहुंच नहीं बन पाई है। जंगलों और वर्षा पर आधारित कृषि पर निर्भर आर्थिक रूप से बेहद कमजोर यहां की आबादी रोजग...

आस्था एवं विश्वास का प्रमुख केंद्र वागड़ का त्रिपुरा सुंदरी माता का मंदिर

       दक्षिणी राजस्थान का वागड़ क्षेत्र अपनी लोक संस्कृति और आध्यात्मिकता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर लोक आस्था और धार्मिक दृष्टि से अनेक मंदिर और उपासना केंद्र है जिसमें विश्व प्रसिद्ध है मां त्रिपुरा सुंदरी माता का मंदिर जो बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 15कि.मि.दूर स्थिति तलवाड़ा के पास उमराई गांव की पहाड़ियों में स्थित मां त्रिपुरा सुंदरी माता का एक प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर है।        राजस्थान के दक्षिणी अंचल में स्थित वागड़ क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र की भूमि आदिकाल से देवी उपासना की भूमि रही है। वागड़ की धरती पर कई देवी-देवताओं के तीर्थस्थल विद्यमान हैं, जिनमें सबसे प्रमुख और पूजनीय स्थान है - त्रिपुरा सुंदरी माता का मंदिर , जो बांसवाड़ा जिले में स्थित है। यह मंदिर न केवल वागड़ की आस्था का केंद्र है, बल्कि राजस्थान की शक्ति उपासना परंपरा का जीवंत प्रतीक भी है।   परिचय-  त्रिपुरा सुंदरी माता का मंदिर बांसवाड़ा जिले के तलवाड़ा कस्बे के पास स्थित है। यह मंदिर वागड़ क्षेत्र के स...