आदिवासियों की प्राकृतिक- धरोहर साझा वन प्रबंधन
जनजातीय समुदाय आज भी देश की मुख्य धारा से पृथक है। यह समुदाय सर्वाधिक उपेक्षित और राजनीतिक दृष्टि से भी सबसे कम शक्तिशाली है। देश के विभिन्न भागों में ऐस समुदाय अपने देश की प्रमुख भाषा, धर्म, संस्कृति और शक्ति संरचना से अलग-थलग देखे जा सकते हैं। इन समुदायों के साथ रंग, जाति, धर्म, कानून एवं पूर्वाग्रहों के आधार पर सामाजिक जीवन में भी भेद किया जा सकता है। अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी परिवर्तन के बावजूद विश्व के दूर-दराज क्षेत्रों में लगभग 50 करोड़ आदिवासी हैं जिनके पास अमूल्य पारिस्थितिकी वन की सम्पदा सुरक्षित हैं। इन आदिवासियों और वनों के बीच एक अटूट रिश्ता है अर्थात् आदिवासियों के लिए वन उनके जीवन का आधार है। इन आदिवासियों के पास उपलब्ध पर्यावरणीय जानकारी एवं बुद्धिमता से प्रकृति और मनुष्य के बीच उचित सम्बन्धों को समझने में भी सहायता मिल सकती है ।लेकिन दुर्भाग्य यह है कि प्रौद्योगिकी विकास, पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति की आंधी में आदिम और मूल संस्कृतियाँ, भाषाएँ, रीति रिवाज और जीवन शैली उखड़कर नष्ट हो रही है जिसके कारण समृद्ध पर्यावरणीय...