थारू जनजाति समाज में शिक्षा, जागरूकता एवं विकास
समाज और शिक्षा का एक दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध है। एक की प्रगति पर दूसरे की प्रगति निर्भर है, एक की अवनति दूसरे के नाश का कारण भी बन जाती है।
भारत एक बहुरंगी और बहुसांस्कृतिक देश है जहाँ विभिन्न जनजातियाँ अपने विशिष्ट जीवन मूल्यों, परंपराओं और संस्कृतियों के साथ निवास करती हैं। इन्हीं जनजातियों में से एक है थारू जनजाति, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र तथा नेपाल की सीमाओं के आसपास पाई जाती है। थारू समाज की पहचान उनके पारंपरिक जीवन, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, लोककला और प्रकृति-आधारित जीवनशैली से होती है। किंतु आधुनिक युग में जब शिक्षा और ज्ञान को विकास की कुंजी माना जा रहा है, तब थारू जनजाति में शिक्षा एवं साक्षरता की स्थिति एक गंभीर विचार का विषय बन गई है।
परिचय-थारू जनजाति उत्तर भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक है। इनकी बसावट मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, महाराजगंज और पीलीभीत जिलों में है। थारू समुदाय के लोग मूलतः कृषक हैं और इनका जीवन जंगलों, नदियों और खेतों से गहराई से जुड़ा हुआ है। थारू लोग अपनी विशेष वेशभूषा, खानपान, नृत्य, संगीत और सामाजिक संगठन के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी बोली को थारू भाषा कहा जाता है, जो हिंदी से मिलती-जुलती है परंतु उसकी अपनी विशिष्टता भी रखती है।
शिक्षा की स्थिति -समाज लंबे समय तक मुख्यधारा के संपर्क से दूर रहा। जंगलों और सीमांत क्षेत्रों में बसे होने के कारण यहाँ शिक्षा की रोशनी देर से पहुँची। ब्रिटिश शासनकाल में इस समुदाय पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। स्वतंत्रता के भी आरंभिक दशकों में शिक्षा का प्रसार धीमी गति से हुआ। आर्थिक तंगी, संचार के अभाव और सामाजिक कुरीतियों ने शिक्षा को अपनाने में बाधा डाली।
समाज में यह धारणा प्रचलित थी कि शिक्षा केवल शहरों या शहरों में रहने वालों के लिए आवश्यक है। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य खेती-बाड़ी और पशुपालन तक सीमित था। इस कारण समाज के अधिकांश लोग निरक्षर थे और बालिकाओं को शिक्षा देना तो बहुत दूर की बात थी।
नियोजित विकास की अवधि में जनजातीय एवं गैर-जनजातीय लोगों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में मौजूद विषमताओं को अनेक योजनाओं के द्वारा समाप्त किया जा रहा है। जनजातियों में शिक्षा के प्रसार के लिए तथा शिक्षितों की संख्या में लगातार वृद्धि के लिए उनके बच्चों को मुफ्त अध्ययन सामग्री, स्कूली कपड़े, छात्रावास की सुविधा तथा छात्रवृत्ति आदि दिया जाता है। इन प्रयासों के फलस्वरूप पिछले पांच दशकों में जनजातीय लोगों में शिक्षितों की संख्या में वृद्धि हुई है। शिक्षा का लाभ जनजातीय महिलाओं की तुलना में जनजातीय पुरुषों को अधिक मिला है।
थारू समाज में औपचारिक शिक्षा की प्रगति विगत दशकों में संतोषजनक नहीं है और न ही औपचारिक शिक्षा का समुचित लाभ इस जनजाति के लोगों को मिल पाया है। अभिभावकों एवं उनके आश्रितों विशेष लगाव इस शिक्षा के प्रति नहीं है। उनमें इसके प्रति उदासीनता की भावना विद्यमान है।
शिक्षा एवं संचार के माध्यम से जनजातीय समाज को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना, समस्याओं की पहचान करना एवं उनका निराकरण आसान हो सकता है। शिक्षा, प्रशिक्षण एवं संचार माध्यमों से जनजातीय समाज में जागरूकता बढ़ रही है।
थारू लोग अपना मूल निवास स्थान चित्तौड़ बताते है और अपने आपको राजपूतों का वंशज मानते हैं। उनका कहना है कि लोगों को चित्तौड़ से मुगलों ने भगा दिया और वे लोग यहाँ आकर रहने लगे। परन्तु वे लोग स्वयं इस बात को नहीं बता पाते हैं कि उनका भगाने वाला मुगल राजा कौन था। बनकटी के कुछ थारूओं के अनुसार वे लोग राणा प्रताप की सेना के हैं जो हारने के बाद यहाँ भागकर आए और बस गए। उनके पास भागते समय थाली, लोटा था जिससे उनका नाम थारू पड़ गया और तभी से वे लोग वहां रहने लगे हैं।
वर्तमान समय में स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, किंतु अब भी थारू जनजाति की औसत साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। विभिन्न सरकारी रिपोर्टों और सामाजिक सर्वेक्षणों के अनुसार, थारू समाज की साक्षरता दर लगभग 55 से 60 प्रतिशत के बीच है।
पुरुष साक्षरता दर लगभग 65-70 प्रतिशत के आसपास है। जबकि महिला साक्षरता दर केवल 45-50 प्रतिशत के बीच है।
इसका मुख्य कारण बालिका शिक्षा के प्रति समाज में जागरूकता की कमी और आर्थिक असमानता है। ग्रामीण थारू क्षेत्रों में आज भी कई बच्चे प्राथमिक शिक्षा के बाद विद्यालय छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके परिवार की की आर्थिक स्थिति दयनीय है।
शिक्षा में आने वाली प्रमुख बाधाएँ-थारू जनजाति के बीच शिक्षा के प्रसार में कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक कठिनाइयाँ हैं।
आर्थिक कमजोरीः थारू परिवारों की आमदनी मुख्य रूप से कृषि और दैनिक मजदूरी पर निर्भर है। ऐसे में वे बच्चों को स्कूल भेजने की बजाय उन्हें खेतों में काम पर लगा देते हैं।
भाषाई अवरोधःथारू बोली हिंदी या अंग्रेजी माध्यम से भिन्न है, जिससे प्रारंभिक शिक्षा समझने में बच्चों को कठिनाई होती है।
शैक्षणिक संस्थानों की कमीःदूरस्थ गाँवों में विद्यालयों की संख्या बहुत सीमित है। कई स्कूलों में शिक्षक नियमित रूप से उपस्थित नहीं रहते और संसाधनों की कमी बनी रहती है।
सामाजिक परंपराएँ और अंधविश्वासःकुछ थारू समुदायों में यह मान्यता रही है कि पढ़ाई-लिखाई से जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होता। इस सोच के कारण शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता।
बाल विवाह और लैंगिक असमानता: लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है, जिससे उनकी पढ़ाई बीच में ही रुक जाती है।
प्रेरणा और मार्गदर्शन का अभाव:समाज में शिक्षित आदर्श व्यक्तित्वों की कमी के कारण बच्चों को प्रेरणा नहीं मिल पाती।
सरकार एवं संस्थाओं के प्रयास-
थारू जनजाति की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएँ प्रारंभ की हैं, जिनसे धीरे-धीरे सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
A. सर्व शिक्षा अभियान के तहत थारू बस्तियों में प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना की गई है।
B. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) विशेष रूप से आदिवासी बच्चों के लिए बनाए गए हैं, जिनमें निःशुल्क शिक्षा, भोजन और आवास की सुविधा दी जाती है।
C. आदिवासी छात्रवृत्ति योजनाएँ लागू की गई हैं ताकि आर्थिक कारणों से कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।
D. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएँ बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित कर रही हैं।
E कुछ गैर-सरकारी संगठन (NGOs) भी थारू समुदाय में शिक्षा और साक्षरता अभियान चला रहे हैं, विशेषकर महिला साक्षरता के क्षेत्र में।
F. डिजिटल शिक्षा और ऐप आधारित शिक्षण ने युवाओं के बीच अध्ययन के नए अवसर खोले हैं।
आगे की राह- हालाँकि प्रगति के संकेत स्पष्ट हैं, फिर भी बहुत काम बाकी है। थारू जनजाति में शिक्षा को पूर्ण रूप से स्थापित करने के लिए कुछ ठोस कदम आवश्यक हैं–
*प्रत्येक गाँव में गुणवत्तापूर्ण विद्यालय और प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध कराए जाएँ।
*मातृभाषा आधारित प्रारंभिक शिक्षा दी जाए ताकि बच्चे सीखने में सहज महसूस करें।
*स्कॉलरशिप और प्रोत्साहन योजनाएँ बढ़ाई जाएँ ताकि गरीब परिवारों के बच्चे स्कूल न छोड़ें।
*महिला साक्षरता अभियान को गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाए।
*स्थानीय सामुदायिक नेताओं और शिक्षित युवाओं को शिक्षा के प्रचार-प्रसार में शामिल किया जाए
निष्कर्ष -थारू जनजाति भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न अंग है। उनका विकास तभी संभव है जब वे शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ें। शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, सामाजिक समानता और आर्थिक उन्नति की कुंजी है।
आज थारू समाज परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। एक ओर पारंपरिक जीवनशैली है, तो दूसरी ओर आधुनिक शिक्षा का उदय हो रहा है। यदि सरकार, समाज और स्वयं थारू समुदाय मिलकर शिक्षा को प्राथमिकता दें, तो आने वाले वर्षों में यह जनजाति न केवल शिक्षित बल्कि सशक्त, आत्मनिर्भर और विकसित समाज के रूप में उभरेगी।
संदर्भ ग्रन्थसूची-
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3- मिनदट्टी ऑफ कल्चर: 1962 आदिवासी, भारत सरकार
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6- दिदिक मर्जीना: 1979 लखनऊ खीरी।
7- कैम्पबेल सी.: 1986 कल्चर एन्थ्रोपोलाजी एण्ड एजुकेशन
8- कुप्पू एम.: 1986 ट्राइबल एजुकेशन इन इंडिया:
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12- राजगीत सिंह: 2007 थारू जनजातीय समाज में स्त्रियों का स्वरूप, नवभारत (मानविकी) अंक-58, उदयपुर, नवभारत।
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