गोविन्द गिरी का भगत आंदोलन और मानगढ़ हत्याकांड

      स्वतंत्रता के लिए सतत् संघर्ष और शौर्य परम्परा में राजस्थान का भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रहा है। राजस्थान के स्वतंत्रता आन्दोलन, सामाजिक और धार्मिक पुनरोत्थान और स्वदेशी आन्दोलन का राजस्थान के जन-जीवन पर काफी असर पड़ा है। श्यामजी कृष्ण वर्मा, केसरीसिंह बारहठ, गोपालसिंह, अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक और मोतीलाल तेजावत राजस्थान में जनजागृति के अगुवा रहे हैं, किन्तु स्वतंत्रता और सामाजिक, धार्मिक सुधार की पहली मशाल गुरू गोविन्दगिरी ने जलाई और राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम में भीलों को भागीदारी दिलाने का श्रेय भी पूर्णतया गुरू गोविन्द गिरी को जाता है। उन्होंने समाज सुधार का प्रचण्ड आन्दोलन छेड़कर लाखों भीलों को भगत बनाकर सामाजिक जनजागृति एवं भक्ति आन्दोलन के जरिये आजादी की अलख जगाई।

 जीवन परिचय -  वागड़ में ब्रिटिश शासन एवं सामन्तवादी सत्ता के खिलाफ गुरू गोविन्द गिरी ने आवाज उठाई तथा जनजाति भील समाज की रूढ़िवादी मान्यताओं के खिलाफ उन्होंने बगावत के झण्डे गाड़ दिये और अपने त्याग, तपस्या और कर्मठता से स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठ जोड़े है। भक्ति और स्वातंत्रय भाव का शंख फूंकने वाले श्री गुरू गोविन्द गिरी का जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा तदनुसार 20 दिसम्बर 1858 ई. को डूंगरपुर जिले में बांसिया (बेडसा) गांव में बंजारा परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री बेछडेगर जी और माता का नाम कमलाबाई था। छपन्निये अकाल के पश्चात् वे बांसिया छोड़कर गुजरात के नटवा गांव में चले गये।गोविन्द गिरी को स्वामी दयानन्द सरस्वती के सम्पर्क में आने का सौभाग्य सन् 11 अगस्त 1882 से 2 मार्च 1883 में उनके उदयपुर प्रवास के दौरान प्राप्त हुआ। स्वामीजी वनवासी घुमक्कड़ बंजारा परिवार में जन्मे इस गोविन्द नामक युवक की ज्ञान पिपासा और समाज सेवा की दृढ इच्छा भाव को जानकर प्रसन्न हुए। गोविन्द गिरी को वनवासियों में सामाजिक बुराइयों को दूर करने, समाज को भक्ति भाव से एकजूट करने की प्रेरणा दी। तत्कालीन समय में राजस्थान, गुजरात और मालवा के अशिक्षित लाखों आदिवासी भीलों में स्वदेशी, स्वधर्म, आत्म सम्मान, कठोर परिश्रम और आवश्यकता पड़ने पर विदेशी राज का जुआ उतार फेंकने का मूलमंत्र देकर गोविन्द गिरी उनके एकछत्र सर्वमान्य पूजनीय नेता बन गये।

 सम्प सभा की स्थापना - सामाजिक क्रांति के अग्रणी गोविन्द गिरी ने आदिवासी समाज सुधार एवं जनचेतना के लिए संपसभा की स्थापना की। आदिवासियों की दूदर्शा उन्हें संस्कारित करने तथा ईसाई दुष्प्रचारकों एवं देश को स्वतंत्र कराने का संकल्प लेकर भगत आन्दोलन को गति प्रदान की। हिन्दू संस्कृति के अनुपालन व आचरण पर जोर देकर भील जनजाति के नैतिक चरित्र उन्नयन का कार्य किया। गोविन्द गिरी ने संप सभा का गठन कर भीलों को धर्मान्तरित होने से रोककर महत्त्वपूर्ण कार्य किया। वे राजस्थान के आदिवासी भील जनजाति समाज में स्वातंत्रय आन्दोलन के जनक थे।
    गोविन्द गिरी के चलाये भगत पंथ में आदिवासी वनवासी जुड़ते गये ओर इनमें राजनैतिक चेतना पनपने लगी। धार्मिक उपदेशों को ग्रहण करते हुए विशाल संख्या में आदिवासी कई कुरीतियों को परित्याग कर अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने लगे। यह भगत आन्दोलन अंग्रेजों की आंखों में चूमने लगा। अंग्रेज अधिकारियों ने सिरोही, ईडर, पालनपुर, मेवाड़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा को सन्देश दिये कि गोविन्द गिरी के कार्यकलापों को तुरन्त रोका जाए। भक्ति एवं जनजाग्रति आन्दोलन रुका नहीं। एक अवतार के रूप में गोविन्दगिरी आदिवासियों में माने जाते है।
गोविन्द गिरी का भगत आन्दोलन -वास्तव में 20वीं शताब्दी के आरंभिक दशक में गुरू गोविन्द गिरी के नेतृत्व में हुआ भील भगत आन्दोलन पूर्व में हुए आन्दोलन से अधिक सशक्त एवं व्यापक था। इसका प्रभाव बांसवाड़ा, डूंरगपुर व मेवाड़ राज्य के साथ गुजरात के कुछ प्रदेशों पर भी पड़ा। 1908 में वह अपने गांव बांसिया आये व तभी उन्होंने भीलों में एकेश्वरवाद व नैतिक नियमों का पाठ पढाना शुरू किया। उससे भीलों को मदिरापान व अपराध वृत्ति छोड़ने तथा अंधविश्वासों को त्यागने का उपदेश दिया तथा उन्हें बेहत्तर जीवन बिताने की और प्रेरित किया। बड़ी संख्या में गोविन्द गिरी के शिष्य बनने लगे जो "भगत" नाम से जाने जात्ते थे। 1907 से 1913 के मध्य उनके 6 लाख भील भगत बनाये। गोविन्द गिरी के इस सामाजिक धार्मिक आन्दोलन में गोविन्द गिरी ने आदिवासियों को एक जूट कर राजस्थान के जनजाति समाज के पहले  आदिवासी आन्दोलन का सूत्रपात किया। यह भगत आन्दोलन अंग्रेजों की आंख का कांटा बना रहा। जनजाति में भगतों का एक नया वर्ग अस्तित्व में आया। भील भगतों ने अपने परम्परागत धर्म विश्वास व जीवन पद्धति से आगे बढ़कर नये विश्वासों व जीवन पद्धति को अपनाया। वस्तुतः इसे भीलों में एक सामाजिक, धार्मिक सुधार आन्दोलन के रूप में वर्णित किया जाता है। इस आन्दोलन के द्वारा आदिवासी भीलों ने स्वयं को शेष समाज के निकट या समकक्ष लाकर अपने उत्थान का प्रयास किया।

भील जनजाति में आध्यात्मिकता का विकास -इस आन्दोलन के फलस्वरूप भगत भीलों के सामाजिक व धार्मिक जीवन में काफी परिवर्तन आया। उन्होंने एक नयी जीवन शैली विकसित की तथा अपने जीवन को नियमित व संतुलित बनाने का प्रयास किया। भगत आन्दोलन शोषण एवं अत्याचारों के विरूद्ध संस्कारयुक्त वनवासी समाज द्वारा विरोध करने का सशक्त माध्यम बना। गोविन्द गिरी ने संप सभा के द्वारा स्वदेशी व स्वराज के लिए जन आन्दोलन प्रारंभ किया। गोविन्द गिरी जानते थे कि स्वदेशी व स्वराज के लिए संस्कार युक्त समाज की आवश्यकता है। उन्होंने दुर्व्यसन मुक्त समाज को खड़ा करने का कार्य किया। शासकों द्वारा बलपूर्वक ली जा रही बैगार और व्यक्तिगत जीवन में नशाखोरी की आदत वनवासियों के जीवन को गुलामी की बेडियों में जकड़ी हुई थी। सम्प सभा व भगत आन्दोलन के माध्यम से वनवासियों ने समूह में शोषण के विरूद्ध आवाज उठांकर नई शक्ति का संचरण किया। वे हर चुनौती का सामना करने के लिये सक्षम बनने लगे।

सम्प सभा के प्रमुख उद्देश्य-  गोविन्द गिरी ने आदिवासियों में समाज सुधार, भक्ति व ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के लिए डगर-डगर, बस्ती-बस्ती, झोंपड़ी-झोंपड़ी तक व्यापक, सम्यक, एकता, संस्था शुद्धता और स्वतंत्रा का महत्व समझाते रहे। समाज में एकता के कार्य की प्रक्रिया को संस्थागत स्वरूप प्रदान करते हुए "सम्प सभा" का नाम दिया। एकता का लोकभाषा में नाम ही "सम्प" सभा होता है।
      गोविन्द गिरी ने आदिवासी भीलों की सामाजिक स्थित्ति को सुधारने के लिए धार्मिक आन्दोलन चलाया। उनके उपदेशों का प्रभाव यह पड़ा कि दक्षिणी राजस्थान के भील भारत के अन्य क्षेत्रों में होने वाली उन्नति से परिचित होने लगे। गोविन्द गिरी ने न केवल सामाजिक सुधार किया वरन् उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने का भी प्रयास किया। गोविन्द गिरी के उपदेशों से आदिवासी भीलों में पुर्नरूत्थान की संभावना दिखने लगी।
गोविन्द गिरी की सम्प सभा के आर्थिक-सामाजिक आन्दोलन के उद्देश्य इस प्रकार थे-
(1) मेहनत करो, मजदूरी करो और अपना तथा परिवार का पोषण अपनी मजदूरी से करो।
गांव-गांव में स्कूल खोलो, बच्चों को पढ़ाओ और ज्ञान का प्रचार करो।
(ii) अपने बच्चों को संस्कारी बनाओ। संस्कार देने वाले लोगों से गांव में कथा वार्ता और व्याख्यान करवाओ।
(iii) अपने परिवार और समाज की आर्थिक स्थिति सुधारने का उपाय करो।
(iv) स्वदेशी का उपयोग करो। अपनी जरूरत के लिए देश के बाहर की बनी हुई किसी वस्तु को काम में मत लो।
(v) अदालतों में मत जाओ और अपने गांव के झगड़ों को गांव की पंचायत के फैसले को सर्वोपरी मानो।
(vi) शराब मत पीओ और मांस मत खाओ।
(vii) चोरी, डाका, लूटमार मत करो।
(viii) बैठ बेगार न करने का सुझाव।
(ix) फिजूल खर्च तथा लड़ाई-झगड़ों से दूर रहो।
      गोविन्द गिरी ने हिन्दू धर्म प्रेरित राजस्थान के भीलों का सामाजिक सुधार तथा उनके दैनिक जीवन शैली में पवित्रता एवं आचरण में सत्यता एवं शुद्धता का उपदेश निरन्तर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों हेतु एक नियमावली तैयार की जो संकल्प के रूप में थी। उनके अनुसार एक भक्त के लिए अपनाने हेतु निम्न कर्म थे-
(1) नियमित रूप से प्रातःकालीन स्नान करना।
(2) सूर्य दर्शन करना, राम का नाम जपना व सत्संग करना।
(3) झूठ नहीं बोलना।
(4) व्यभिचार नहीं करना।
(5) शराब व मांस का सेवन नहीं करना।
(6) चोरी छिनाली नहीं करना।
(8) पुरुषों द्वारा बड़ी-बड़ी चोटियां नहीं रखना। महिलाओं द्वारा लाख का चूड़ा नहीं पहनना।
(9) ग्यारस के दिन हल नहीं चलाना।
(10) धार्मिक तिथियों पर उपवास रखना आदि।
   ।।।।श्री गोविन्द गिरी ने जीव, अहिंसा, सत्यता, शारीरिक शुद्धता, ईश्वर स्मरण एवं पखवाड़े में बैलों को भी विश्राम देना जैसा, श्रेष्ठ जीवन पंथ अपने अनुयायियों को दिया गया जो निश्चित रूप से एक मनुष्य में श्रेष्ठता व दयालुता के भाव का संचार करता है।

गोविन्द गिरी के धार्मिक उपदेश -गोविन्द गिरी ने अपने अनुयायियों को धुणिया प्रज्वलित करने धार्मिक आस्था के ध्वज को फहराने एवं नित्य प्रति यज्ञ का आयोजन करने की प्रतिज्ञा करवाई। गोविन्द गिरी के भक्ति आन्दोलन और अनुयायियों को दिये गये उपदेशों से स्वाभिमानी वनवासियों का निर्माण होने लगा। अहिंसा, भक्ति, जीवन में पवित्रता से व्यक्ति के मन में अन्याय के विरूद्ध मुखार होने का भाव जाग्रत हुआ।
(1) वे एकेश्वरवाद के समर्थक थे। उन्होंने कहा कि परमात्मा का केवल एक ही नाम है।
(2) गोविन्द गिरी ने बहुदेववाद का विरोध किया।
(3) गोविन्द गिरी ने भीलों को परमात्मा के प्रति आस्था रखने की सलाह दी तथा उसकी आराधना, आदर करने का भी सुझाव दिया।
(4) उन्होंने भीलों को मूर्ति-पूजा बन्द करने का सुझाव दिया।
(5) गोविन्द गिरी ने संसार को क्षण भंगुर माना।
(6) गोविन्द गिरी ने भीलों को कर्म के सिद्धान्त में विश्वास रखने को कहा। उनके मतानुसार मनुष्य को अपने किए कर्म का फल भुगतना पड़ता है।
(7) गोविन्द गिरी ने अपने शिष्यों को सुझाव दिया कि अपने घरों में हवन कर दीप प्रज्जवलित करें।
(8) उन्होंने भीलों को राम-नाम के जप का भी सुझाव दिया था।
(9) गोविन्द गिरी ने भीलों को त्यौहार पर उपवास रखने का सुझाव दिया।

मानगढ़ का जलियावाला हत्याकाण्ड -राजस्थान में बांसवाड़ा जिले के आनन्दपुरी (भूखिया) कस्बे से 8 किमी दूर गुजरात की सीमा पर मानगढ़ धाम स्थित है। यह सर्वविदित है कि इस क्षेत्र में पहली बार व्यापक रूप से सामाजिक सुधारों के माध्यम से स्वतंत्रता की अलख जगाकर प्रतिरोध गोविन्द गिरी ने किया था। गोविन्द गिरी ने स्थानीय भीलों को कुरीतियों से मुक्त करवाकर उनमें आत्मविश्वास की प्रतिमूर्ति करने एवं उन्हें स्वतंत्रता का भाव पढ़ाना आरम्भ किया परन्तु अंग्रेजों को यह सब पसंद नहीं आया।गोविन्द गिरी की लोकप्रियता बढ़ती गई एवं आन्दोलन उग्र हो जाने से वातावरण तनावपूर्ण हो गया। जहां वे जाते उनके साथ हजारों भक्त हो लेते थे। गांव-गांव गुरूजी ने धुणियां स्थापित कर जनजाति भीलों को शिक्षित दीक्षित करने का कार्य किया। शोषण एवं बैठ-बेगार न देने के लिए भीलों को जाग्रत किया। जिससे डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कुशलगढ़ एवं सन्तरामपुर के राजा भयभीत हो गये। उन्होंने गोविन्द गिरी की गतिविधियों पर अंकुश लगाने, के लिए अंग्रेजो से मदद मांगी।
छाणी नगरी धाम (बेडसा) की स्थापना के बाद गोविन्द गिरी ने 1903 में मानगढ़ धाम की स्थापना की। हर वर्ष माघ पूर्णिमा को इस धाम पर भक्त सम्मेलन एवं यज्ञ होने लगे। मानगढ़ आदिवासी भीलों का तीर्थ स्थल बन गया। हजारों की संख्या में भक्तों के इस धाम पर आने से बांसवाड़ा एवं सन्तरामपुर के राजाओं में भय व्याप्त हो गया। गोविन्द गिरी के उपदेशों में बेगार न देना व मांस एवं मदिरापान न करने से यहां के राजाओं के राजकोष में हानि होने लगी। इसी कारण राजाओं ने इनकी आज्ञा की अवहेलना मानी।
    सन् 1913 की माघ पूर्णिमा को प्रतिवर्ष की भांति भक्तों का भारी सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में हजारों की संख्या में मानगढ़ की पहाड़ी पर भक्त, संत एवं उनके अनुयायी भील लोग सम्मेलन के लिए इक‌ट्ठे हुये। बांसवाड़ा, संतरामपुर व डूंगरपुर के राजाओं ने उन पर आक्रमण की आशंका देखते हुए अंग्रेजों से सहायता मांगी। खेरवाड़ा, दाहोद एवं गोदरा, बांसवाड़ा की सम्मिलित फौजों ने मानगढ़ की पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया। गोविन्द गिरी पर सम्मेलन को स्थगित करने के लिए दबाव डाला गया, परन्तु शान्तिपूर्वक धर्म यज्ञ के लिए उन्होंने यज्ञ को चालू रखा। धृत एवं नारियलों की आहुतियों से, उठती विशाल ज्वालाएं वातावरण को सुगंधित कर रही थी। चारों तरफ नगाड़ों की एवं शंख ध्वनियों से वातावरण आनंदमय एवं उत्साहवर्धक बन गया था। गोविन्द गिरी की जय-जयकार से वातावरण गूंज रहा था। उनके अनुयायी अपनी तलवारों, बन्दूकों, तीर-कमानों, भालों, गंडासों एवं फरसों से आहुतियां दे रहे थे। ऐसे उत्साहपूर्ण वातावरण में अंग्रेज सेनापति ने मानगढ़ पहाड़ी पर बन्दूकें व तोपें चलाने का आदेश दे दिया।  खून की नदियां बहने लगी। लगभग 1500 आदिवासी भील शहीद हो गये।
    गोविन्द गिरी को गिरफ्तार कर लिया गया। फासी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। कुछ समय बाद जेल से छूट गये। किन्तु उनके डूंगरपुर, कुशलगढ़ और बांसवाड़ा प्रवेश पर रोक लगा दी गई। अपना अंतिम समय उन्होंने गुजरात के कम्बाई नामक गांव में खेती-बाड़ी करके व सेवा कार्य करके बिताया। भीलों में स्वाधीनता आन्दोलन की अलख जगाने वाले महान् क्रांतिकारी सामाजिक, धार्मिक आन्दोलन के प्रणेता गुरू गोविन्द गिरी का 20 अक्टूबर 1931 को कम्बाई, लीमड़ी (गुजरात) में स्वर्गवास हो गया।
      आज मानगढ़ धाम राष्ट्र की ऐतिहासिक धरोहर है तथा गुरू गोविन्द गिरी पूजनीय है। मानगढ़ हत्याकाण्ड को इतिहास में समुचित स्थान नहीं मिला। कवि विजय देवनारायण साही के अनुसार -
तुम हमारा जिक्र इतिहास में नहीं पाओगे।
क्योंकि हमने अपने को इतिहास के विरूद्ध दे दिया है। छुटी जगह दिखें जहां-जहां या दबी हुई चीख का अहसास हो। समझना हम वहीं मौजूद थे।

संदर्भ ग्रन्थ सूची -
1- भगवतीलाल जैन (1882) "स्वतंत्रता संग्राम में भगत आन्दोलन का योगदान" (साधु गोविन्द गिरी और भगत आन्दोलन), साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर।
2- लखावत, औकार सिंह (2012) "स्वातंत्रयं वीर गोविन्द गुरू और वनवासियों का बलिदान" तीर्थ पैलेस प्रकाशन, सोडाला, जयपुर।
3- वडेरा, रमेशचन्द्र (2004) लेख "मानगढ़ का भगत आन्दोलन " मानगढ़ सन्देश, भील समाज सेवा संस्थान, बांसवाड़ा, अंक 19 अक्टू-नवम्बर।
4- भट्ट, निरजा (2007) "18वीं व 19वीं शताब्दी में राजस्थान का भील समाज", हिमांशु पब्लिकेशन्स,, उदयपुर।
5- व्यास, नरेन्द्र एन./भाणावत, महेन्द्र (2012) "जनजाति जीवन और संस्कृति सुभद्रा पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली।
6- वशिष्ठ, विजय कुमार (1997) "भगत मूवमेन्ट" ए स्टडी ऑफ कल्चरल ट्रांसफारमेशन ऑफ द भील्स ऑफ साउथर्न राजस्थान" श्रुति पब्लिकेशन्स, जयपुर।
7- जावलिया, शरद (1986) लेख दक्षिणी राजस्थान का दलितोद्वारक क्रांतिकारी गुरू गोविन्द गिरी, शोध पत्रिका, वर्ष 37, अंक-2, अप्रैल-जून।
8- वरिष्ठ, विजय कुमार (1997) "भगत मूवमेन्ट" ए स्टडी ऑफ कल्चरल ट्रांसफारमेशन ऑफ द भील्स ऑफ साउथर्न राजस्थान" श्रुति पब्लिकेशन्स, जयपुर।
9- पेमाराम (1980) "एग्रेरियन मूवमेन्ट इन राजस्थान जयपुर।
10- जावलिया, शरद (1986) लेख दक्षिणी राजस्थान का दलितोद्वारक क्रांतिकारी गुरू गोविन्द गिरी, शोध पत्रिका, वर्ष 37, अंक-2, अप्रेल-जून।
11- वशिष्ठ, विजय कुमार (1997) "भगत मूवमेन्ट ए स्टडी ऑफ भिल्स ऑफ साउथर्न राजस्थान, श्रुति पब्लिकेशन्स, दिल्ली।
12- मीणा, जगदीशचन्द (2003) भील जनजाति का सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवन हिमांशु पब्लिकेशन्स, उदयपुर।
13- फोरिन डिपार्टमेन्ट, पोलिटिकल, इन्टरनल-ए-8 "मार्च 1994 प्रोसेडिग्स संख्या 46-47
14- भगवतीलाल जैन (1986) "हिन्दू धर्म प्रेरित राजस्थान के भीलों का सामाजिक सुधार" उदयपुर।
15- लखावत, ओंकार सिंह (2012) "स्वातंत्रय वीर गोविन्द गिरी और वनवासियों का बलिदान" तीर्थ पैलेस प्रकाशन, जयपुर।
16- त्रिवेदी, हिम्मतलाल "तरंगी" वागड़ के सन्तों व मावजी का भीलों के उत्थान में योगदान (उद्धत, एल. पी. माथूर, "स्वतंत्रता क्रांति के प्रणेता गोविन्द गिरी")
17- मीणा, जगदीश चन्द्र (2003) "भील जनजाति का सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवन"
18- माथुर, एल.पी., उदयपुर।


               डॉ. कांतिलाल निनामा 
               अतिथि व्याख्याता 
             गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय 
                 बांसवाड़ा ,राजस्थान 

टिप्पणियाँ

  1. मानगढ़ के भगत आंदोलन में पुजनीय गोविंद गिरी के मार्गदर्शन में आदिवासियों की आध्यात्मिकता, सात्विकता, धार्मिकताऔर स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों की भागीदारी पर मौलिक लेख आदिवासी समाज के सर्वनिम इतिहास को प्रदर्शित करता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा मिलना चाहिए देश की आजादी की लड़ाई में 1500से अधिक भील आदिवासियों ने कुर्बानी दी थी देश का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आदिवासी विकास:चिंतन और सरोकार

वागड़ की भील जनजाति-इतिहास के परिप्रेक्ष्य में

भारतीय जनजातियों की जीवनशैली एवं परंपराएं