जनजातीय जीवन शैली और परंपराओं पर आधुनिकता का प्रभाव
जनजातीय समाज भारतीय आदिम संस्कृति का प्रतिनिधि रहा है और आज भी भारतीय संस्कृति को संजोए हुए है। आज आदिवासी समाज जंगल और वनों पर ही आधारित न होकर धीरे शिक्षा, कृषि अर्थव्यवस्था की और अग्रसर हो रहा है। आधुनिक समाजों की तुलना में जनजातीय समाज की सभ्यता और संस्कृति को विकास-क्रम में बहुत पिछड़ा हुआ एवं श्रम-विभाजन की दृष्टि से सरल श्रम-विभाजन से प्रभावित समाज माना गया है। विश्व के लगभग सभी समाजों में इस प्रकार के जनजातीय समुदाय न्यूनाधिक मात्रा में विद्यमान हैं जिनको विविध सामान्य विशेषताओं के आधार पर नगरीय, औद्योगिक कृत या अन्य ग्रामीण समुदायों से अलग करके रखा गया है। सामान्यतः जनजातीय समुदाय जंगलों, पहाड़ों एवं सुदूर वनों में रहने वाले ऐसे मानव समुदाय हैं जिनका औद्योगिक और नगरी समुदायों से बहुत कम सम्पर्क रहा है तथा अपनी पृथकता के कारण विशेष सभ्यता और सामाजिक व्यवस्था से अधिक पहचाने गए हैं। परन्तु वर्तमान में जनजाति समाज पर आधुनिकता का प्रभाव पड़ा है जिसके कारण जनजातीय संस्कृति संक्रमित हो रही है।
प्रस्तावना -भारत एक बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश है। यहाँ की सामाजिक संरचना में जनजातियाँ एक विशिष्ट स्थान रखती हैं। भारत की लगभग 8.6 प्रतिशत जनसंख्या जनजातीय समुदायों से संबंधित है, जो देश के विभिन्न भागों — मुख्यतः मध्य भारत, पूर्वोत्तर भारत, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और गुजरात — में निवास करती हैं।
आदिम जनजातियों की अपनी विशिष्ट जीवन शैली, परंपराएँ, रीति-रिवाज, आस्था और सामाजिक संगठन हैं, जो सदियों से चले आ रहे हैं। किंतु 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आधुनिकता, औद्योगिकीकरण, तकनीकी विकास, शिक्षा, संचार माध्यमों और बाज़ारवाद ने इनकी पारंपरिक जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डाला है।
प्रमुख विशेषताएँ-
जनजातीय समाज की पहचान उसकी सरलता, सामूहिकता और प्रकृति-निष्ठा में निहित है। वे प्रकृति के निकट रहते हैं और जंगल, जल, जमीन को अपनी जीवन-रेखा मानते हैं। उनके आवास, वस्त्र, भोजन, त्योहार, गीत-संगीत, विवाह और धार्मिक आस्थाएँ सब कुछ प्रकृति और सामूहिक भावना से जुड़े होते हैं।आदिवासियों का जीवन आम लोगों से इस अर्थ में भिन्न है कि वे आधुनिकतावादी प्रवृत्तियों से पार्थक्य की नीति अपनाते है। अर्थात् अपनी भाषा, संस्कृति, परम्पराओं को आदिवासी समाज किसी प्रकार से छोडना नहीं चाहता है। परन्तु वर्तमान में वे आधुनिकता और वैश्वीकरण से प्रभावित हो रहे है।
आर्थिक जीवनः कृषि, वनोपज, शिकार, मछली पकड़ना और हस्तशिल्प उनके प्रमुख आर्थिक आधार हैं।
धार्मिक आस्थाः वे सूर्य, चंद्रमा, पहाड़, नदी और वृक्षों की पूजा करते हैं। उनके देवता प्रकृति से जुड़े होते हैं।
सांस्कृतिक जीवनः लोकनृत्य, लोकगीत, वाद्ययंत्र,
पारंपरिक उत्सव और सामूहिक आयोजन इनके जीवन का हिस्सा हैं।
सामाजिक संरचना: जनजातीय समाज में सामूहिक निर्णयों का बड़ा महत्व होता है। पंचायत या परंपरागत मुखिया सामाजिक न्याय का संचालन करते हैं।
आधुनिकता का प्रभाव -
स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए अनेक योजनाएँ चलाईं। सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों, मोबाइल नेटवर्क, टी.वी., इंटरनेट और सरकारी योजनाओं के माध्यम से आधुनिकता जनजातीय जीवन में प्रवेश कर गई। आधुनिकता के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, रोजगार और तकनीकी सुविधाओं का प्रसार हुआ। इससे जनजातीय समाज बाहरी दुनिया से जुड़ने लगा। आज जनजातीय क्षेत्र पहले की तरह एकाकी नहीं रहे। उनके बच्चे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने लगे, युवा शहरों में काम करने लगेऔर आधुनिक भौतिक सुख सुविधाओं का उपभोग करने लगे।
आधुनिकता का सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही पक्ष है। वैश्वीकरण की इस प्रक्रिया ने विकासशील देशों में प्रत्यक्ष निवेश, वृद्धि, गुणवत्ता आधारित उपभोक्ता सामग्री का प्रसार, घरेलु उद्योगों व कुटीर उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान व वैश्विक मंच पर प्राप्ति आदि को बढ़ावा दिया है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में तेजी से कमी हुई है। नकारात्मक प्रभावों पर विचार करने वाले पूँजीवाद का विकृत्त चेहरा ही दिखाई देता है। विकसित देशों द्वारा गरीब व विकासशील देशों के क्रय शक्ति सम्पन्न उपभोक्ता बाजार पर कब्जा करने की लालचा, उनका शोषण, दम्पिंग प्रक्रिया में तेजी, स्थानीय लघु व कुटीर उद्योगों का ध्वस्त होना, कृषकों को भूमिहीन करके उनको श्रमिक बनाना, पाश्चात्य संस्कृति की गटिया परम्पराओं का परम्परागत समाज में प्रवेश करना। भूमिहास, सामाजिक अपराधों में वृद्धि आदि का तीव प्रसार हुआ है।
भारत में औपनिवेशिक शासन की स्थापना एवं सुदृढीकरण के बाद से ही आदिवासियों को राजनीतिक, आर्थिक व प्रशासनिक दृष्टि से शेष भारतीय समाज के साथ जोड़ने की कोशिश की गई। इस प्रक्रिया में न केवल उनका स्वतंत्र व शान्तिपूर्ण जीवन भंग हुआ वरन् वे भी कर्ज, बेरोजगारी, गरीबी-शोषण जैसी आधुनिकतावादी प्रवृत्तियों से ग्रस्त हुए। यहीं से उनकी मानवाधिकारों के हनन की प्रक्रिया भी शुरू हुई। यही दशा राजस्थान के आदिवासी वर्ग के साथ भी हुई है। अंग्रेजी शासन में वन प्रबन्धन का उद्देश्य व्यावसायिक था। इसलिये अंग्रेजों का दृष्टिकोण/ध्येय वन क्षेत्रों पर एकाधिकार एवं स्वार्थपरक दोहन था। रेल्वे, औद्योगिकीकरण, बांध निर्माण के लिए जंगल की भूमि ली गई और आदिवासियों को बिना मुआवजे के बेदलख कर दिया गया क्योंकि उनके पास अभिलेख रूप में कोई मालिकाना हक नहीं था। विकास के नाम पर निर्वाह के लिए आवश्यक अधिकतम प्राकृतिक स्त्रोतों से वंचित वनवासी का जीवन और अधिक जटिल हो गया है। निरंतर खराब होती आर्थिक स्थिति के कारण आदिवासियों का जीवन स्तर और अधिक नीचे गिर गया है। स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् सम्पूर्ण देश के भू-भाग पर स्वामित्व भारत सरकार का माना गया है। आदिवासियों की इस भूमि पर भी स्वामित्व सरकार का ही हो गया है। तात्कालिक व्यवस्था में उसकी परख करने के बजाय गुलामी के दस्तावेजों को उसी अनुरूप स्वीकार कर लिया।
स्वतंत्रता पश्चात् आदिवासी वर्ग के उत्थान का दायित्व केन्द्रीय सरकार पर आ गया है। लेकिन विरासत में हजारों वर्षों से शोषित इन समुदायों के जीवन स्तर को कुछ बेहत्तर कर पाना भी गंभीर चुनौति बन गया। नीति निर्माताओं ने इनके विकास की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। अभी आजाद हुये देश के समक्ष ढेरों चुनौतियाँ विद्यमान है।
आधुनिकता का नकारात्मक प्रभाव-
जहाँ आधुनिकता ने जनजातीय समाज को विकास की राह पर लाया, वहीं इसके नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं।
संस्कृति और परंपराओं का क्षरण – आधुनिक जीवन शैली और शहरी संस्कृति के प्रभाव से पारंपरिक लोकगीत, नृत्य, भाषा और रीति-रिवाज धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। युवा पीढ़ी अब इन परंपराओं से दूर होती जा रही है।
भौतिकवाद और प्रतिस्पर्धा – पहले जहाँ जनजातीय समाज सामूहिकता पर आधारित था, अब वहाँ व्यक्तिगतता और भौतिक सुखों की चाह बढ़ रही है। समाज में आर्थिक असमानता और प्रतिस्पर्धा का भाव पनप रहा है।
पर्यावरणीय असंतुलन – औद्योगिकीकरण और खनन ने जंगलों को नष्ट किया है। भूमि अधिग्रहण और बाँध परियोजनाओं से आदिवासी विस्थापित हुए हैं। इससे उनका जीवन-आधार—जंगल, जल और भूमि—खो गया है।उनका जीवन-आधार—जंगल, जल और भूमि—खो गया है।
सांस्कृतिक पहचान का संकट - पश्चिमी जीवन शैली और बाज़ारवाद के कारण जनजातीय युवाओं में आत्मगौरव की भावना कमजोर हुई है। अपनी भाषा और पहनावे को "पुराना" मानने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
सामाजिक समस्याएँ - आधुनिकता के साथ नशाखोरी, बेरोजगारी, अपराध और पारिवारिक टूटन जैसी समस्याएँ भी बढ़ी हैं।
निष्कर्ष-आज सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाया जाए। विकास का अर्थ केवल भौतिक प्रगति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों का संरक्षण भी है।
शिक्षा ऐसी हो जो जनजातीय संस्कृति और लोक ज्ञान को भी महत्व दे। सांस्कृतिक संरक्षण और समाज को मिलकर जनजातीय लोककला, गीत, नृत्य और भाषाओं का संरक्षण करना होगा।
जनजातीय जीवन शैली भारतीय संस्कृति का अमूल्य हिस्सा है। यह हमें प्रकृति के साथ संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। आधुनिकता ने जहाँ इन्हें नए अवसर दिए हैं, वहीं उनकी पारंपरिक संस्कृति पर खतरा भी पैदा किया है। इसलिए यह आवश्यक है कि विकास की प्रक्रिया जनजातीय परंपराओं, पर्यावरण और सामाजिक संतुलन के अनुरूप हो।यदि आधुनिकता और परंपरा का संतुलन कायम रखा गया तो जनजातीय समाज न केवल अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखेगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को और अधिक समृद्ध बनाएगा।
संदर्भ ग्रन्थ सूची -
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जवाब देंहटाएंVery nice sirji
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंHa
जवाब देंहटाएंGood good
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