भारतीय जनजातियों की जीवनशैली एवं परंपराएं

     भारत में प्राचीनकाल से आदिवासी जनजातियाँ निवास करती रही हैं। इनकी अपनी एक विशिष्ट संस्कृति रही है। भारतीय समाज विभिन्न प्रजातीय समूहों का संगम स्थल रहा है। भारत में लगभग 700 आदिवासी समूह विभिन्न प्रांतों में निवास करते हैं।  जनजातियाँ प्रायः शहरी सभ्यता से दूर बहुत दूर घने जंगलों, पर्वतों, घाटियों एवं पठारी क्षेत्रों में निवास करती हैं। सामान्यतः लोग आदिवासी शब्द का अर्थ पिछड़े हुए और असभ्य मानव समूह से समझते हैं जो एक सामान्य क्षेत्र में रहते हुए एक सामान्य भाषा बोलता है और सामान्य संस्कृति को प्रयोग में लाता है।
     भारत विविधताओं का देश है जहां अनेक जनजातियां अपनी विशिष्ट पहचान के साथ निवास करती है। इन जनजातियों को आदिवासी कहा जाता है। आदिवासी जीवन शैली और परम्पराएं प्रकृति के निकट साद‌गीपूर्ण तथा सामुहिक सहयोग पर आधारित होती है। यहां रहने वाली जनजातियां भारतीय समाज की प्राचीनतम और मौलिक इकाईयों में से एक है। भारत में लगभग 700 से अधिक जनजातियां निवास करती है और ये कुल आबादी का 8.5 प्रतिशत हिस्सा है।
      जनजातियों का वर्गीकरण उन प्राचीन आदिम जातियों में किया गया है जो मूलतः एक निश्चित क्षेत्र में निवास करते रहे हैं, उनकी जीवन की शैली स्वछंद प्रकृति की रही है। प्रत्येक क्षेत्र में उनकी भाषा एवं सामाजिक जीवन में कुछ विभिन्नताएँ देखने को अवश्य मिलती हैं, लेकिन उनका सांस्कृतिक जीवन एवं परम्पराएँ कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। वे प्रायः संयुक्त परिवारों के रूप में अपना जीवन यापन करते हैं। यद्यपि उनका निवास स्थान एक-दूसरे से दूर अवश्य होता है लेकिन अपनी सांस्कृतिक धरोहर को हमेशा बनाये हुए हैं।
जनजातियों की प्रमुख विशेषताएँ -
        भारतीय जनजातियों में अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विशेषताएँ पायी जाती हैं जो निम्न हैं:
(1) वे प्रायः सभ्य जगत से दूर दुर्गम स्थानों में निवास          करते हैं।
(2) उनकी अपनी एक जनजातीय भाषा होती है।
(3) उनका निग्रिटो, आस्ट्रेलोइड अथवा मंगोलायड में से        किसी एक प्रजाति समूहों से संबंध होता है।
(4) उनके समूह व अपना नाम, पारस्परिक व्यवहार के        नियम और निषेध होते हैं।
 (5)  उनका आदिम धर्म होता है जो सर्वजीववाद                के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है जिसमे भूतो           तथा आत्माओं की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है।
(6) उनकी अपनी सामान्य संस्कृति एवं सुरक्षा संगठन        होते हैं। उनकी मदिरा एवं नृत्य के प्रति विशेष               अभिरुचि होती है।
(7) उनका एक स्वतंत्र संगठन होता है। वे जनजातीय        व्यवसाय को अपनाते हैं। जैसे उपयोगी प्राकृतिक           वस्तुओं का संग्रहण, शिकार, कृषि वन में उत्पन्न             वस्तुओं का संग्रहण करना आदि सम्मिलित है।
जनजातियों की जीवन शैली-
    भारतीय जनजातियों की जीवनशैली का संबंध प्रकृति से रहा है। उनका प्रकृति से जुड़ाव, परस्पर सामुदायिक भावना, प्रकृति एवं वनों के प्रति सम्मान, सरल जीवन शैली शामिल है। उनकी परम्पराओं में प्रकृति पूजा, पारम्परिक त्योहार, धार्मिक परम्पराएँ, विशिष्ट विवाह प्रथाएँ और पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थानीय ज्ञान शामिल है। जनजातीय समुदाय ने पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन आदिवासियों की धरोहर रहे हैं। वनों के संरक्षण से जनजातियों की अर्थव्यवस्था को गति एवं संस्कृति को गरिमा प्रदान होती रही है। वनों के संरक्षण से ही उनके परम्परागत विश्वास, प्रथाएँ, रीति-रिवाज, लोकगीत, लोकनृत्य, लोक कथाएं, लोक मान्यताएं, उनकी बोली तथा उनके जादू-टोने आदि की बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से रक्षा होती रही है। अतः वनों से न सिर्फ उन्हें मातृत्व तुल्य लाभ प्रदान हुआ है बल्कि उन्हें आश्रय, भोजन, रोजगार तथा सुदृढ़ संस्कृति भी प्रदान होती रही है।
जनजातीय जीवनशैली की विशेषताएं -
(क) प्रकृति आधारित जीवन- जनजातीय समाज का जीवन मुख्यतः जंगल, नदी, पर्वत और धरती पर निर्भर करता है। उनकी आजीविका खेती, शिकार, मछली पकड़ना, पशुपालन, वनोपज संग्रह तथा शिकार, मछली पकड़ना, पशुपालन, वनोपज संग्रह तथा कंद-मूल और फल-फूल पर आधारित होती है। वे आधुनिक साधनों पर कम और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक विश्वास करते हैं।
(ख) आवास-जनजातीय लोग अपने घर पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं। ये घर प्रायः मिट्टी, बाँस, लकड़ी, पत्तों और घास-फूस से निर्मित होते हैं। इनका निर्माण सरल होने के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं से बचाव में भी सहायक होता है।
(ग) भोजन-इनका भोजन सरल तथा स्थानीय संसाधनों पर आधारित होता है। मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, साथ ही कंद-मूल, हरी सब्जियाँ, फल-फूल, मछली और कभी-कभी मांस इनके भोजन का हिस्सा होते हैं। यह भोजन न केवल पौष्टिक होता है, बल्कि इनकी जीवनशैली के अनुरूप भी होता है।
(घ) वस्त्र और आभूषण -जनजातीय लोग अपने परिधान पर विशेष ध्यान देते है। बुने हुए कपड़े, रंगीन कपड़े और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग उनकी विशिष्ट पहचान है। पुरुष प्रायः धोती या लुंगी और महिलाएँ साड़ी अथवा लुगड़ा पहनती हैं। आभूषणों का इनके जीवन में विशेष महत्व है। सोना ,चाँदी, ताँबे, मोतियों और सीपियों से बने आभूषण पुरुष और महिलाएँ दोनों पहनते हैं।
जनजातीय परंपराएं और सांस्कृतिक धरोहर -
(क) धर्म और विश्वास-जनजातीय लोग प्रकृति को देवता मानते हैं। वे सूर्य, चंद्रमा, जल, वृक्ष, पहाड़ और पशु-पक्षियों की पूजा करते हैं। उनके देवी-देवता स्थानीय और प्राकृतिक स्वरूप में होते हैं। कई जनजातियों में गाँव के रक्षक देवता, जंगल के देवता और फसल के देवता होते हैं। इनकी धार्मिक आस्थाएँ आधुनिक धर्मों से अलग होते हुए भी गहरी आध्यात्मिकता को दर्शाती हैं।
(ख) त्योहार और अनुष्ठान- जनजातीय समाज में त्योहारों और अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। ये त्योहार प्रायः कृषि और ऋतु चक्र से जुड़े होते हैं। फसल कटाई, वर्षा आगमन या शिकार से जुड़े पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। इन अवसरों पर गीत, संगीत और नृत्य अनिवार्य माने जाते हैं।
(ग) नृत्य और संगीत-जनजातीय जीवन में नृत्य और संगीत आत्मा की अभिव्यक्ति हैं। समूह नृत्य इनके समाज की सामूहिकता को दर्शाते हैं। ढोल, मांदर, नगाड़ा, बांसुरी आदि वाद्य यंत्रों के साथ सामूहिक नृत्य किया जाता है। राजस्थान की गवरी, गुजरात का गरबा, मध्यप्रदेश का गोंड नृत्य, ओडिशा का साम्बलपुरी नृत्य इनकी सांस्कृतिक धरोहर हैं।
(घ) लोककला और हस्तशिल्प-जनजातीय समाज कला-कौशल में निपुण होता है। बांस, लकड़ी, मिट्टी और धातु से बनी वस्तुएँ, गोंड और भील चित्रकला, दीवारों पर किए जाने वाले सजावटी चित्र, तथा मिट्टी के बर्तन उनकी सृजनात्मकता को प्रदर्शित करते हैं। इन कलाओं का उपयोग केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है।
(ङ) सामाजिक व्यवस्था-  जनजातीय समाज सामूहिकता पर आधारित होता है। निर्णय लेने के लिए पंचायत या मुखिया प्रणाली प्रचलित है। विवादों का निपटारा सामाजिक परंपराओं के अनुसार सामूहिक रूप से किया जाता है। सहयोग और आपसी मेलजोल इनकी विशेष पहचान है।
जनजातीय परंपराओं की विशेषताएँ-
सादगी और सहजता - उनका जीवन भौतिकवादी नहीं बल्कि आत्मनिर्भर और सरल होता है।
सामूहिकता – व्यक्तिगत हित से अधिक सामूहिक हित को महत्व दिया जाता है।
प्रकृति प्रेम – जंगल, नदियाँ, पशु-पक्षी, वृक्ष इनके जीवन का अभिन्न हिस्सा होते हैं।
परंपरागत ज्ञान - औषधीय पौधों का ज्ञान, कृषि पद्धति और पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ इनकी धरोहर हैं।
सांस्कृतिक विविधता - प्रत्येक जनजाति की भाषा, नृत्य, परिधान और रीति-रिवाज अलग होते हैं।
आधुनिकता का प्रभाव एवं चुनौतियां -
    आज के समय में जनजातीय समाज पर आधुनिकता, शिक्षा, शहरीकरण और बाज़ारवाद का गहरा प्रभाव पड़ा है। कई पारंपरिक परंपराएँ विलुप्त हो रही हैं। युवाओं में आधुनिक पहनावा, जीवन शैली और तकनीकी साधनों की ओर आकर्षण बढ़ रहा है। दूसरी ओर जंगलों की कटाई, भूमि अधिग्रहण और पलायन जैसी समस्याओं ने इनके जीवन को संकट में डाल दिया है। फिर भी, कई स्थानों पर सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास से जनजातीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में काम हो रहा है। कला मेलों, हस्तशिल्प प्रदर्शनियों और सांस्कृतिक उत्सवों के माध्यम से इनकी परंपराओं को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
सारांश -जनजातीय जीवन शैली और परंपराएँ भारतीय समाज की प्राचीन धरोहर हैं। इनका जीवन हमें सादगी, सामूहिकता और प्रकृति प्रेम का संदेश देता है। आज जबकि आधुनिक सभ्यता पर्यावरण संकट और सामाजिक विघटन का सामना कर रही है, ऐसे समय में जनजातीय समाज से सीखने के लिए बहुत कुछ है। उनकी परंपराएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि वास्तविक समृद्धि प्रकृति के साथ सामंजस्य, सामाजिक सहयोग और सांस्कृतिक विविधता में निहित है।

                           डॉ. कांतिलाल निनामा
                              अतिथि व्याख्याता 
                    गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय 
                             बांसवाड़ा, राजस्थान 

टिप्पणियाँ

  1. नेक विचारधारा गुरु जी👌👌🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. जनजातीय परंपराओं पर प्रकाशित आलेख बहुत ही मौलिक और शानदार है। आपको बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आदिवासी विकास:चिंतन और सरोकार

वागड़ की भील जनजाति-इतिहास के परिप्रेक्ष्य में